Spiritual Reality

  • अध्यात्मिक सच्चाई:

    • अध्यात्मिक सच्चाई हमें अनोखे सफ़र पर ले जाती है । ये ऐसा सफ़र है जो आपका जीवन बदल देगा । यह सफ़र आपको ज्ञान और सुख की सीमा तक ले जायेगा । अध्यात्मिक सच्चाई का यह कार्यक्रम ध्यान और ध्यान के अनुभवों पर बनाया गया है । इस कार्यक्रम को आराम से देखिये । देखिये और देखते देखते इस के साथ बहते जाइये । इसका विश्लेषण मत कीजिये, इसमें डूब जाइये । हर विचार को दूर कर दीजिये । गहरी सासें लीजिये, बस देखते रहिये, ये सिर्फ आपके लिए है । 
    • इस पूरी सृष्टि के हम एक बहुत छोटे से कण हैं । हम सब की एक ही खोज हैं – अच्छा स्वास्थ, शांती, ज्ञान, सौभाग्य, शक्ति; मतलब हर समय हर हाल में सुख और शान्ति की कामना । ये पाने के लिए हर इंसान कड़ी मेहनत करता है, पर क्या हम इसे पा सकते हैं ? जी हाँ, यह हांसिल की जा सकती है । ये सब तभी मुमकिन है जब हम आत्मज्ञान और विश्वशक्ति को समझ लें । तो चलिए विश्वशक्ति की हम जानकारी लेते हैं ।

    विश्वशक्ति:

    • विश्वशक्ति पूरी विश्व में मौजूद है । इस शक्ति से पूरा तरपूंज, गृह, मनुष्य, परमाणु बंधे हुए हैं । यह हर जगह मौजूद है । इसका बंधन पूरे विश्व को व्यवस्थित रखता है । विश्वशक्ति जीवनशक्ति है, दिव्य शक्ति है । विश्वशक्ति हमारे जीवन के संतुलन और चेतना के लिए जरुरी है । विश्वशक्ति हमारी हर क्रिया और काम की नीव है ।  गहरी नींद और पूरी ख़ामोशी में हमें थोड़ी सी विश्वशक्ति मिलती है । इस शक्ति का हम अपने रोज़ के दिमागी कामों में इस्तमाल करते हैं, जैसे देखना, बोलना, सुनना, सोचना और शरीर के हर काम । ये थोड़ी सी शक्ति हमें सोते समय मिलती है, जो इन सब कामों के लिए काफी नहीं है । इसलिए हम थक जाते हैं, तनाव से भर जाते है । इससे हम शारीरिक और मानसिक झंझटो में फंस जाते हैं, बीमार हो जाते हैं । इन सब से छुटकारा पाने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा विश्वशक्ति मिलनी जरुरी है । विश्वशक्ति जरुरी है हमारे शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए, सुखी और स्वस्थ जीवन के लिए, हर काम और मौके से जूझने के लिए, ज्ञान हांसिल करने के लिए, और अंत में अपनी चेतना बढाने के लिए । भरपूर विश्वशक्ति हमें केवल ध्यान से मिलती है ।
    • नींद अचेत ध्यान है । ध्यान सहज नींद है । नींद में हमें थोड़ी सी ही शक्ति मिलती है । ध्यान से भरपूर शक्ति मिलती है । ये शक्ति हमारे शरीर की, दिमाग की और बुद्धी की शक्ती बढ़ाती है । छठी इन्द्रीय उजागर करती है, और भी बहोत कुछ । इस ज्ञान से बढी हुई शक्ति से हम बिना तनाव के स्वस्थ और खुश रह सकते है । हमारी शक्ती बहोत बढ़ जाती है । ध्यान हमारी चेतना स्वयं की और आने के सिवा कुछ नहीं है । ध्यान से हम जान बूझ कर अपने शरीर से दिमाग तक जाते है । दिमाग से ज्ञान और ज्ञान से स्वयं की ओर, और उस से भी आगे पहुच जाते हैं । ध्यान करने के लिए हमें अपने शरीर की सारी हरकतों को बंद करना पड़ता है, जैसे शरीर का हिलना, देखना, बोलना और सोचना । ध्यान कैसे करते हैं आइये देखते हैं ।

    ध्यान कैसे करते हैं:

    • ध्यान के लिए पहला काम है स्थिति । आप किसी भी तरह बैठ सकते हैं । बैठना आराम दायक और निच्छल होना चाहिए । हम जमीन और कुर्सी पर बैठ कर ध्यान कर सकते हैं । ध्यान हम किसी भी जगह कर सकते हैं जहां हम सुखदाई हों । आराम से बैठिये । पैरो को मोड़िये, उँगलियों को फंसाइए, आँखे बंद कर लीजिये, अन्दर और बाहर की आवाजों पर रोक लगाइए, किसी भी मन्त्र का उच्चारण नहीं कीजिये । पूरे शरीर को ढीला छोड़ दीजिये । ढीला.... बिलकुल ढीला । जब हम पैरों को मोडते हैं और अँगुलियों को फंसा लेते हैं, तो शक्ति का दायरा बढ़ जाता है, स्थिरता बढ़ जाती है । आँखें दिमाग के द्वार हैं, इसलिए आँखें बंद होनी चाहियें ।  मन्त्र उच्चारण, कोई भी ध्वनियाँ – अन्दर की या बाहर की, मन की क्रियाएं हैं । इसलिए इन्हें बंद करना होगा । जब शरीर ढ़िला छोड़ दिया जाता है, चेतना दुसरे कक्ष में पहोच जाती है ।

    मन और बुद्धी:

    • मन विचारों का समूह है । बहुत से विचार हमारे मन में उभरते रहते हैं । जब विचार आते हैं तो प्रश्न भी उठ खड़े होते हैं – जाने और अनजाने । मन और बुद्धी को भावातीत करने के लिए हमें अपनी सांस पर ध्यान देना चाहिए । अपने आप पर ध्यान देना हमारी प्रकृति है । जानबूझ कर सांस न लीजिये । जानबूझ कर सांस लीजिये न छोडिये । सांस लेना या छोड़ना अनायास होना चाहिए । प्राकृतिक सांस पर ध्यान दीजिये । ये इसकी व्याख्या है । यही तरीका है ।

    • विचारों का पीछा मत कीजिये । विचार, सवाल, उनसे चिपक मत जाइये । विचारो को हटा दीजिये । सांस पर पुनः ध्यान दीजिये । प्राकृतिक साँसों पर ध्यान दीजिये । साँसों में खो जाइये । इसके बाद साँसों की गहराई कम होती जाएगी, धीरे... धीरे... सांस हल्की... और छोटी... होती जाएगी ।

    • आखिर में सांस बहुत छोटी हो जाएगी और दोनों भौ के बीच में चमक का रूप ले लेगी । इस दशा में हर किसी में न सांस रहेगी न विचार । वो विचारों से परे हो जाएगा । ये दशा कहलाती है निर्मल स्थिति या बिना विचारों की दशा । ये ध्यान की दशा है । ये वो अवस्था है जब हम पर विश्वशक्ति की बौछार होने लगती है, हम जितना ज्यादा ध्यान करेंगे उतनी ही ज्यादा विश्वशक्ति हमें प्राप्त होगी ।

    • विश्वशक्ति प्राणमय शरीर की शक्ति में प्रवाह करती है । शक्ति से भरा वह शरीर "प्राणमय" कहलाता है ।

    प्राणमय शरीर:

    • प्राणमय शरीर में ७२ हजार से ज्यादा रंग रहित नाड़ियाँ या शक्ती की नलियाँ होती हैं, जो पूरे शरीर में फ़ैली हुई हैं । शक्ति नलियाँ सर के भाग से शुरू होती हैं । ये भाग ब्रह्मरंद्र कहलाता है । ये नलियाँ सारे शरीर में पेड़ की जड़ों और डालियों की तरह फ़ैली हुई हैं । प्राणमय शरीर हमारे शरीर का विशेष आधार है । प्राणमय शरीर हमारे कार्य, यहाँ तक कि हमारे अस्तित्व का स्त्रोत है । प्राणमय शरीर को गहरी नींद में या फिर ध्यान में विश्वशक्ति मिलती है । हम इस शक्ति का उपयोग अपनी सारी मानसिक और शारीरिक क्रियाओं में जैसे - देखना, बोलना, सुनना, सोचना और शारीरिक कार्यों में करते हैं । इन्हीं सारे कर्मो का आधार विश्वशक्ति है ।

    • विश्वशक्ति का बहाव केवल हमारे विचारो पर आधारित है । जब हम सोचने लगते हैं, तो विश्वशक्ति का बहाव रुक जाता है । मतलब ये है, हमारा सोचना विश्वशक्ति का बाँध है । जब विश्वशक्ति का बहाव कम हो जाता है, तो शक्ति नलियों में कम शक्ति पहुचती है । ये कमी हमारे शरीर की शक्ति में रंग रहित सूक्ष्म धब्बे दाल देती है । ये धब्बे धीरे धीरे हमारे शरीर में बीमारी पैदा करते हैं । मतलब ये है हमारे प्राणमय शरीर में शक्ति की कमी सारी बीमारियों की जड़ है । ध्यान से हमें बहोत बड़ी मात्रा में विश्वशक्ति मिलती है । ये हमारी शक्ति नलियों के ज़रिये सारे शरीर में पहुचती है । जब विश्वशक्ति बहुत बड़ी मात्रा में शक्ति नलियों में बहने लगती है तो रंग रहित सूक्ष्म धब्बे मिट जाते हैं । और जब ये धब्बे साफ़ हो जाते हैं तो हम सारी बीमारियों से मुक्त हो जाते हैं । जब ब्रह्मरंद्र में शक्ति बहने लगती है, हमें सिर में और सारे शरीर में भारीपन लगने लगता है । जब शक्ति हमारी नलियों को साफ़ करने लगती है, तो हमें उस हिस्से में खुजली या दर्द का आभास होता है । कभी कभी हमें भौतिक शरीर के कई हिस्सों में दर्द भी महसूस हो सकता है । इन दर्दों को दूर करने के लिए हमें दवा लेने की जरुरत नहीं है । ज्यादा ध्यान करने से ये दर्द दूर हो जाते हैं ।

    • ध्यान के द्वारा ज्यादा विश्व संजोने से हम सारी मानसिक और शारीरक बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं । अगर हम पिरामिड के अन्दर बैठ कर ध्यान करें तो ध्यान की अवस्था साधारण से तिगुनी जल्दी पहुच जाती है । अब हम यह मालूम करेंगे पिरामिड और पिरामिड की शक्ति क्या है ।

    पिरामिड और पिरामिड शक्ति :

    • हमारी पृथ्वी गृह पर पिरामिड एक मज़बूत भवन है, जिसको सबसे ज्यादा विश्वशक्ति मिलती है । पिरामिड का कोण ५२ डिग्री ५१ मिनिट है । इस कोण की बदौलत इसे सबसे ज्यादा विश्वशक्ति मिलती है । पिरामिड किसी भी चीज से बनाया जा सकता है । पिरामिड को सही दिशाओं में रखना आवश्यक है । उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम ।
    • विश्वशक्ति इसके नीचे से १/३  ऊंचाई पर इकट्ठी होती है । ये जगह शाही कक्ष कहलाता है । शाही कक्ष में सबसे ज्यादा विश्वशक्ति होती है । पिरामिड की शिखा पर एक क्रिस्टल लगाया जाता है, इस से विश्वशक्ति बढ़ती है और पिरामिड के सारे हिस्सों तक पहुचती है । अगर हम पिरामिड के अन्दर ध्यान करें तो निर्मल स्थिति तिगुनी जल्दी प्राप्त होती है । पिरामिड लोक परलोक से आदान प्रदान के भी काम आता है । पिरामिड के अन्दर ध्यान करने से रोग मुक्ति में सहायता मिलती है और ध्यान के सारे अनुभव हो सकते है ।
    • आइये अब तक हमने जो समझा है उसे एक बार फिर दोहराते हैं । ध्यान स्वयं की ओर आने की यात्रा है । इसके लिए हमें शरीर को उत्कृष्ट बनाना पड़ता है । आरामदेह तरीके से बैठने से हमारा शरीर शिथिल हो जाता है । और चेतना को भावातीत बनाने में सहायता मिलती है । अपनी प्राकृतिक साँसों पर ध्यान देने से हम अपना मन भावातीत बना लेते हैं । जब हमारा शरीर भावातीत हो जाता है तो विश्वशक्ति बहने लगती है । विश्वशक्ति से शरीर की सारी बीमारियाँ दूर हो जाती हैं और हम बिना दवाओं के स्वस्थ हो जाते हैं । ज्यादा से ज्यादा ध्यान करने से विश्वशक्ति सारे तनाव दूर कर देती है । जैसे जैसे हम ध्यान करते जायेंगे हमारा मन शांत और शांत और विशाल होता चला जायेगा । इस से हमारी स्मरण शक्ति भी बढ़ेगी । ज्यादा से ज्यादा ध्यान करने से हमारी समझ बूझ की शक्ति भी बढ़ेगी और इस से हमारे दूसरों से संभंध बढ़ेंगे । ध्यान से सुखी गृहस्थ जीवन प्राप्त होगा । मन की शांति मिलेगी । ध्यान आपको स्वस्थ और परम आनंदित बनता है । ध्यान से हमें अपने सवालों के जवाब मिलते हैं । ये और इस से ज्यादा पाने के लिए हर दिन ध्यान करना चाहिए । ध्यान किसी भी जगह किया जा सकता है । ध्यान किसी भी समय किया जा सकता है, सफ़र में भी । एक बार में अपनी उम्र के बराबर समय तक ध्यान करना चाहिए । मिसाल के तौर पर ३० साल के उम्र के व्यक्ति को एक समय में कम से कम ३० मिनीटो तक ध्यान करना चाहिए । ध्यान करने के लिए आपको परिवार से दूर रहने की जरुरत नहीं है । हर किसी को ध्यान करना चाहिए । बच्चे सबसे अच्छा ध्यान करते हैं । ये ५ साल की उम्र से ध्यान शुरू कर सकते हैं । ध्यान करने के लिए आपको किसी गुरु या मास्टर की जरुरत नहीं है । आपका गुरु या मास्टर आपके भीतर है । आपका सांस आपका गुरु है । ये सब के लिए है ।

    भाग-२:

    ब्रह्माण्ड:

    • ध्यान हमारी चेतना की स्वयं की ओर जाने की यात्रा है । स्वयं तक पहुचने के लिए हमें मन और शरीर को उत्कृष्ट बनाना पड़ता है । जब हम स्वयं पहुच जाते हैं तब हमें भरपूर विश्वशक्ति मिलती है । ज्यादा विश्वशक्ति हमें ज्ञान के क्षेत्र में ले जाती है । ज्ञान या बोध क्या है, इस पर विचार करते हैं । ध्यान हमारे ज्ञान को ऊंचे स्तर तक ले जाता है । ज्ञान और कुछ नहीं केवल एक अनुभव है । अनुभव और कुछ नहीं अपने आप में पूरी तरह डूब जाना है । ज्यादा से ज्यादा ध्यान करने से हमें ज्यादा शक्ति मिलती है । इस ज्यादा शक्ति से हम हर चीज़ में ज्यादा ग्रस्त हो जाते है । और इस तरह हम ज्यादा ज्ञान प्राप्त करते है । ज्ञान के द्वारा हमारी समझबूझ और बुद्धिमत्ता में वृद्धि होती है । इस समझबूझ से हम समझ जाते है हम केवल शरीर और मन ही नहीं हैं, हम समझ जाते हैं हम एक अद्भुत जीव हैं । और ज्यादा समझ के द्वारा अपनी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं । ज्यादा शक्ति और ज्यादा ज्ञान हमारी चेतना का विस्तार करता है । चेतना का विस्तार ही आत्मा का ध्येय है । ज्यादा ज्ञान हमें विशिष्ठ इन्द्रियों द्वारा मिलता है जैसे दिव्य चक्षु और सूक्ष्म शरीर ।

    दिव्य चक्षु:

    • दिव्य चक्षु हमारी आत्मा का बहुत ही शक्तिशाली माध्यम है । ये परलोक की वास्तविकता देखने महसूस करने और सुनने का बहुत ही शक्तिशाली माध्यम है । आत्मा की ये तीन प्रक्रिया ही दिव्य चक्षु हैं । ज्यादा से ज्यादा ध्यान करने से ज्यादा शक्ति बहने लगती है । ज्यादा शक्ति दिव्या चक्षु को गतिशील करती है । ध्यान करने के लिए ये अनोखा अनुभव है । दिव्य चक्षु जब गतिशील होने लगता है, तब हमारे मस्तिष्क यानि माथे पर खिचाव और खुजली होने लगती है । हमें विभिन्न रंगों की छल्कियां अपने चारो और घूमती हुई दिखाई देती हैं । हमें फुसफुसाहट और चलने की आवाजें सुनाई देती हैं । हमें लगता है जैसे हम गुप्त अँधेरी सुरंग में यात्रा कर रहे हैं । जब हम ज्यादा ध्यान करते हैं, तो हमारे प्राणमय शरीर को काफी दिव्य शक्ति मिल जाती है, जिस से हमारे दिव्य चक्षु की सिद्धि हो जाती है । हमें ये स्तर और दुसरे स्तर साफ़ दिखाई देने लगते हैं । दिव्य चक्षु की सम्पूर्णता से हमें बहुत सी चीजें आँखों से ज्यादा साफ़ दिखाई देने लगती हैं । हमें दुसरे स्तरों की वास्तविकताएं दिखाई देने लगती हैं | हमें दिखाई देती हैं वो चीजें जो ५ ज्ञानेन्द्रियों से भी दिखाई नहीं देती । हम महसूस करते है वो बहुत सी चीजें जो शब्दों में बयान नहीं की जा सकती । हमें सुनाई देती हैं पाश ध्वनियाँ, दुसरे स्तर के वाद्यों की आवाजें । हमें दिखाई देते हैं वो महापुरुष जिनका शारीरिक रूप हमारे साथ नहीं हैं । हमें दिखाई देते हैं वो महापुरुष जिनका शारीरिक रूप हमारी कल्पना में है । और अधिक ध्यान करने से हमें वो महापुरुष तीव्र ज्योति के रूप में दिखाई देते हैं । तीव्र ज्योति के रूप में देखने के बाद भी हम उन्हें पहचान सकते हैं । हम महापुरुषों का सन्देश सुन सकते हैं । हम महसूस करते हैं एक सुरंग में यात्रा करने का अनुभव, और अंत में प्रकास में विलीन होने का अनुभव । हम जानते हैं कि दिव्य चक्षु के अनुभवों के द्वारा हम अपनी सारी समस्याओ का समाधान महापुरुषों द्वारा भेजे गए संदेशो से कर सकते हैं या दुसरे लोको की वास्तविकताओं द्वारा एक अनुभव के रूप में । इस से हमारी हरकतें बदलेंगी, हमारे विश्वास बदलेंगे, हमारी समझ बदलेगी । दिव्य चक्षु के इस अनुभव से हमारे सामने मौजूद भौतिक स्तर का बोध बदल जायेगा ।

    सूक्ष्म शरीर और सूक्ष्म यात्रा:

    • आइये अब हम स्वयं यानी के शरीर के दुसरे साधनों की जानकारी लेते हैं । सूक्ष्म शरीर स्वयं का वो साधन है जो दुसरे लोको को ज्ञान देता है । सूक्ष्म शरीर हमारी चेतना का दूसरा रूप है । हमारे भौतिक शरीर जैसा साधारण स्थिति में चेतना हमारे पूरे शरीर में मौजूद रहती है । हम सूक्ष्म शरीर की तरंगो का अनुभव करते हैं । इन्हें हम स्वप्न कहते हैं । जागृत अवस्था में हम सूक्ष्म शरीर का अनुभव ध्यान द्वारा कर सकते हैं । सूक्ष्म शरीर की यात्रा अंतराल और समय से परे है । सचेत अवस्था में अंतराल के अनुभवों के बाद हमें नए अंशो का ज्ञान मिलता है ।

    • ध्यान में भरपूर विश्वशक्ति मिलने के बाद चेतना जो हमारे पूरे शरीर में फ़ैली हुई है, एक बिंदु की ओर जाने लगती है । जब चेतना बढ़ती है तो हमें भौतिक शरीर में झटकों का अनुभव होता है । ऐसा लगता है जैसे हमारा शरीर तैर रहा हो । लगता है हमारे हाथ पैर हैं ही नहीं । हमें अपना शरीर पंख की तरह हल्का लगने लगता है । ये पारलौकिक शक्ति कहलाती है ।

    • ध्यान करने से हमें अधिक से अधिक विश्वशक्ति मिलती हैं । हमारी चेतना सूक्ष्म शरीर का रूप धारण करके बहुत तेजी से घूमने लगती है, जिस से हरकतें बढ़ने लगती हैं । इन हरकतों के बाद हमारा सूक्ष्म शरीर भौतिक शरीर से बाहर आने लगता है । ये दोनों शरीर चांदी जैसे डोर से जुड़े रहते हैं । ये चंडी की डोर और कुछ नहीं तेज़ गति से खाद्खादाती हुई चेतना है जो भौतिक शरीर से सूक्ष्म शरीर को और सूक्ष्म शरीर से भौतिक शरीर को सन्देश देती रहती है । और इस तरह हम अंतराल का सफ़र तय करते हैं । अंतराल की यात्रा हमारी चेतना की जाने और अनजाने की यात्रा है । अंतराल की यात्रा द्वारा हमें स्वयं के बारे में उच्चतम ज्ञान और बूझ मिलती है । अंतराल की यात्रा में हमारा सूक्ष्म शरीर सारे भौतिक जीवो और तत्वों जैसे पृथ्वी, पानी, अग्नी, वायु और आकाश के बीच में से गुजर सकता है । सूक्ष्म शरीर सारे लोको के बीच से निर्भीक गुजर सकता है । ध्यान करने वाला व्यक्ति अपने शरीर से बाहर आकर अपने भौतिक शरीर को देख सकता है । इस से उसे उच्चतम बोध होता है । वो समझ पाता है कि वो शरीर मात्र नहीं बल्की शरीर में रहता है । ये एक गहन बोध है । हर किसी को अंतराल की यात्रा का अनुभव करना चाहिए । अधिक से अधिक यात्रा करने से हमारी सीमाएं ख़त्म हो जाएँगी । हम जान जायेंगे कि हम असीम हैं । केवल इसी अनुभव के द्वारा हम जान जायेंगे कि हम ही चेतना हैं । हम जान जायेंगे कि हम असीम हैं । हम जीवन का नया विस्तार जान जायेंगे ।

    निर्वाण:

    • ज्यादा से ज्यादा ध्यान करने से हमें ज्यादा विश्वशक्ति मिलेगी । विश्वशक्ति द्वारा अपने हर काम में क्रियाशील होने की हमारी क्षमता बढ़ती है । शरीर मन और स्वयं से ज्यादा क्रियाशील होने से हम हर स्थिति को पूरी तरह समझ पाते है । ये समझ और कुछ नही ज्ञान है । साधारण मनुष्य को केवल अनुभव मिलता है क्युकी उस अवस्था में वो ज्ञान के बारे में नहीं सोचता, क्युकी उस अवस्था का अनुभव वो केवल भौतिक समझ से करता है । ज्ञान योग उस अवस्था को पूरी तरह समाझ लेता है क्युकी वो जानता है कि वो केवल शरीर नहीं सिर्फ शरीर में रहता है । वो जानता है कि अवस्थाएं उसके विकास के लिए हैं । ध्यान के अनुभव के बाद और व्यवहारिक जीवन में उनका प्रयोग करने से अपार समझ का आभास होगा । इस समझ से हजारो दरवाजे खुल जायेंगे । ये दरवाज़े हमारे जीवन की नयी उपलब्धियों का विस्तार करेंगे । हमारी समझ से उपलब्धियों और ज्ञान की अधिक बढ़ोतरी होगी । इस से हमारी चेतना का विस्तार होगा जो और कुछ नहीं बल्की विवेक की उपलब्धि है । इस विवेक का अनुभव कुछ ऐसा होगा जैसे वो हजारो सुनहरी पत्तियों वाला कमल है । हर एक पट्टी समझ की एक नयी मात्रा होगी । ज्यादा से ज्यादा मात्रा में समझने के बाद हमें दुसरे लोको की मौजूदगी ज्यादा से ज्यादा समझ आ जाएगी । इस समझ से हम जान जायेंगे कि मृत्यु कभी नहीं होती । हम अनंत हैं । हम समझ जायेंगे कि जीवन क्या है और मृत्यु क्या है |

    जीवन के वाद जीवन :

    • हम इस धरती पर विश्व चेतना की एक कण के रूप में आते हैं । उद्गम स्थान से हम स्वयं के प्राणमय शरीर का ढांचा ले कर आते हैं । हम इस धरती पर अनोखे अनुभव करने आते हैं । अपने अनुभवों के लिए हम एक गर्भ स्थान या कोख चुनते हैं, हम माता पिता, वातावरण और हालात चुनते है । जीवन का पूरा ढांचा स्वयं को मालूम होता है । माँ को चुनने के बाद चेतना का एक कण माँ के गर्भ स्थान में प्रवेश करता हैं । चेतना का माँ के गर्भ स्थान में प्रवेश होने के बाद गर्भस्थ शिशु में प्राण आते है । प्राणमय शरीर में विश्वशक्ति के हिसाब से और उनके कारणों से प्राकृतिक शरीर बनने लगता है ।
    • चेतना बारम्बार उद्गम स्थान में आती रहती है और जब तक पहली सांस आती है, माँ के गर्भ स्थान से बाहर आने के बाद वो बाहर की पहली सांस लेता है, इसे जन्म कहते है । पहले दिन से सात वर्ष तक हमें उद्गम स्थान का आभास रहता है । सात वर्ष की उम्र से दिमाग अपना आकार लेना शुरू करता है । १४ वर्ष में ये क्रिया पूरी हो जाती है । बुद्धी की क्रियाशीलता १४ वे वर्ष से शुरू हो कर २१ वे वर्ष में सम्पूर्ण हो जाती है । २१ वे वर्ष से २८ वे वर्ष तक मनुष्य शरीर दिमाग और बुद्धी के मिश्रण का अनुभव करता है । २८ वे वर्ष से जीवन उसकी स्वयं की बुद्धी पर निर्भर करता है । अगर मनुष्य स्वयं से आगाह नहीं होता तो उसकी चेतना शरीर और दिमाग के बीच में अटकी रहती है । और यही उस से सारे दुःख शुरू हो जाते हैं । वो हालात समझ नहीं पाता । इस से हर बात सोचनीय हो जाती है । वो अपने आप को गुप्त कठोरता के आंचल में छुपा लेता है । कठोरता विश्वशक्ति के बहाव को रोक देती है जिसके कारण वो शारीरिक बीमारियों की दबाव और तनाव में फंस जाता है । वो अपना जीवन बिना सावधानी के बिताता है । वो अपने जीवन का उद्देश्य नहीं समझ पाता । वो बचपन से जवानी, जवानी से बुढापे तक जीवन बिता कर पृथ्वी से सिधार जाता है । वो अपने जीवन का उद्देश्य पूरा नहीं कर पाता । इसे हमें मृत्यु कहते है । मृत्यु के बाद भी उसके दिमाग का कठोर स्तर, गलत बूझ चेतना को उद्गम स्थान नहीं पहुचने देती । गलत बूझ के कारण अपना स्वर्ग और नरक खुद पैदा कर लेता है और छोटे दर्जे का अध्यात्मिक जीव बन कर रह जाता है । अगर मनुष्य स्वयं में सरोवर हो कर अपना जीवन शुरू करता है तो वो हर हाल में आनंदपूर्वक रहेगा । मृत्यु के बाद भी वो निचले लोको में नहीं रहेगा, वो उद्गम स्थान पर लौट जायेगा ।
    • दिव्य चक्षु अनुभव और सूक्ष्म शरीर अनुभव से ज्यादा ज्ञान प्राप्त होता है । इस ज्ञान से जीवन और मृत्यु का अर्थ समझ आता है । शरीर, दिमाग, बुद्धी, स्वयं और जीवन की शक्ति अच्छी तरह समझ में आयेगी । मनुष्य समझ जायेगा कि चेतना विश्वशक्ति और ज्ञान का मिश्रण है । चेतना शक्ति और ज्ञान पाने के लिए पृथ्वी पर आती है । सदा सच्चाई के सहारे जीने से मनुष्य पूरी सृष्टि की निर्माण व्यवस्था को पूर्ण रूप से समझ सकता है । इस समझ के द्वारा मनुष्य एक अद्भुत सृष्टिकर्ता बन सकता है । और फिर मनुष्य का हर वाक्य "ब्रह्म-वाक्य" होगा । वो जो सोचेगा वो सम्पूर्ण होगा । उसका हर कार्य एक नया आविष्कार होगा । यही है "ज्ञान बोध" ।

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